साजिशों के बीच मोहब्बत
दिल्ली की सर्द सुबहें अक्सर धुंध और रहस्य में डूबी होती हैं। तेज़ रफ्तार कारों, छिपी निगाहों और लंबी दीवारों के पीछे कई कहानियाँ जन्म लेती हैं। उन्हीं में से एक थी आरव राज सिंह की ज़िंदगी — एक ऐसा नाम जो अख़बारों के पन्नों में, सत्ता के गलियारों में, और व्यापार की दुनिया में हर जगह गूंजता था।
आरव के पिता, विक्रम राज सिंह, भारत सरकार में केंद्रीय मंत्री थे। पर सिर्फ़ नाम का मंत्री होना उनके लिए अपमानजनक था — असल में वही सत्ता के असली सूत्रधार थे। उनके घर में हर बात का मतलब होता था, हर रिश्ते की कीमत। और आरव… वो इस राजनीति की छाया में पलते हुए बड़ा हुआ था। महंगे स्कूल, बोर्डिंग, फिर लंदन की यूनिवर्सिटी — लेकिन जब भी वह लौटता, पिता की वही एक सीख मिलती — "भावनाओं से बड़ा कुछ नहीं होता… सत्ता में सिर्फ़ नियंत्रण मायने रखता है।"
उसी शहर की दूसरी तरफ़, पूर्वी दिल्ली की एक तंग गली में काव्या मिश्रा अपनी माँ के लिए गर्म पानी कर रही थी। घर में सिर्फ़ तीन लोग थे — वह, उसकी बीमार माँ और शांत स्वभाव के सरकारी बाबू पिता। काव्या हिंदी साहित्य की छात्रा थी, किताबों की दीवानी, और सपनों की बेहद सावधान उपासक। उसे ये भी पता था कि मिडिल क्लास की लड़कियों को सपने नहीं आते, उन्हें सिर्फ़ हकीकतों में जीना होता है।
उनकी पहली मुलाकात कनॉट प्लेस के एक किताब कैफ़े में हुई थी। काव्या वहाँ 'प्रेमचंद की कहानियाँ' ढूंढ़ रही थी, और आरव वहीं किसी ऑफ-रिकॉर्ड मीटिंग के लिए पहुँचा था। मास्क पहना था, आँखों में गहरी थकावट और एक निगाह जो किसी को जल्दी पहचान लेती थी। जब दोनों एक ही किताब पर हाथ रखते हैं, हल्की सी टकराहट होती है, और वो पहली मुस्कराहट जन्म लेती है जो बाद में धीरे-धीरे सीने में जगह बना लेती है।
काव्या ने कहा, "आप लीजिए, शायद आप जल्दी में हैं।"
आरव ने पलटकर जवाब दिया, "हम दोनों पढ़ सकते हैं, अगर आप चाहें।"
काव्या चौंकी, फिर मुस्कराकर बैठ गई। किसी अनजान से किताब बाँटना — ये उसके लिए नया था।
वो मुलाकात छोटी थी, लेकिन आरव की निगाहें उस लड़की के भीतर कुछ ऐसा पढ़ चुकी थीं जो शायद ही कोई और पढ़ पाया हो — सादगी, हिम्मत और मासूमियत की ताक़त।
उस रात, काव्या ने अपनी डायरी में लिखा — "एक अजनबी मिला, जिसकी आँखों में झील सी गहराई थी। जैसे बहुत कुछ कहा गया हो… पर बिना शब्दों के।"
आरव की दुनिया कुछ और थी। वो जानता था कि उसे जल्द ही "युवा भारत यूनियन" का चेयरमैन बनाया जाने वाला है — एक राजनीतिक औपचारिकता, लेकिन असल में यह उस शक्ति की पहली सीढ़ी थी जिसकी चाह में उसके पिता ने अपनी ज़िंदगी गवां दी थी।
विक्रम सिंह ने बेटे को चेतावनी दी — "इस समय तुम्हारी कोई भी गलती पूरे परिवार को ले डूबेगी। किसी लड़की या भावना के चक्कर में मत पड़ना, ये राजनीति है बेटा, प्यार यहाँ गुनाह है।"
लेकिन आरव का दिल अब राजनीति से नहीं, उस मुलाकात से जुड़ने लगा था। उसने खुद को रोकना चाहा, लेकिन फिर किसी लाइब्रेरी में या कैफ़े के कोने में जब वो लड़की मिल जाती, तो वक़्त जैसे ठहर जाता।
काव्या के लिए वो सिर्फ़ "आरव" था — कोई आम लड़का जो उससे बात करता है, उसे सुनता है, और कभी-कभी किताबों के पन्नों पर अपनी राय भी देता है। उसे नहीं पता था कि ये वही आरव है जिसकी तस्वीरें न्यूज चैनल्स पर आती हैं।
कुछ समय बाद, उन्होंने एक-दूसरे को मिलने का वक़्त तय करना शुरू कर दिया। आरव ने कभी अपनी पहचान नहीं बताई। काव्या ने कभी पूछने की ज़रूरत नहीं समझी। शायद, सच्चे एहसासों को नाम की ज़रूरत नहीं होती।
उनकी मुलाक़ातें एक गुप्त प्रेम कहानी का रूप ले चुकी थीं। हर मुलाकात में कुछ अनकही बातें होतीं, कुछ रुक जाने वाले स्पर्श, और कुछ वो लम्हे जिनमें पूरी दुनिया रुक जाती।
लेकिन हर प्रेम कहानी में एक मोड़ आता है… जब बाहर की दुनिया अंदर की शांति को तोड़ने लगती है।
एक रात, आरव के पिता के पास एक गुप्त रिपोर्ट आती है जिसमें लिखा होता है: "आरव लगातार एक लड़की से मिल रहा है जो मिडिल क्लास बैकग्राउंड से है। उसका नाम काव्या मिश्रा है।"
विक्रम सिंह ने फौरन आरव को बुलाया। "तुम जानते हो ये क्या कर रहे हो? एक ग़लत लड़की के साथ, ग़लत जगह, ग़लत वक़्त पर। उसे छोड़ दो।"
आरव ने पहली बार अपनी आवाज़ में विरोध लाया: "वो ग़लत नहीं है। अगर दुनिया उसे मेरी कमज़ोरी समझे, तो ठीक है। लेकिन मैं उसे छोड़ नहीं सकता।"
विक्रम सिंह ने चुपचाप एक फोटो फाइल आगे सरका दी — काव्या की फैमिली, उनके आर्थिक हालात, बैंक रिकॉर्ड, पिता का ट्रांसफर — सबकुछ।
"हमारे लिए रिश्ते सिर्फ़ भावना नहीं होते… निवेश होते हैं। ये लड़की तुम्हारे करियर की सबसे बड़ी गलती बन जाएगी।"
आरव ने वो फाइल बंद कर दी और कहा, "तो मुझे गिराने वाली सिर्फ़ एक लड़की है? फिर राजनीति बहुत कमज़ोर निकली…"
उसी दिन से आरव और काव्या की मुलाकातें छिपकर होने लगीं। अब ये सिर्फ़ प्रेम नहीं रहा — ये एक जंग बन चुकी थी।
काव्या को धीरे-धीरे समझ में आने लगा कि आरव कोई साधारण इंसान नहीं है। एक दिन जब उसने गलती से टीवी पर आरव की स्पीच देखी — एक पॉलिटिकल रैली में — तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
वो चुप रही।
उसने आरव से कुछ नहीं पूछा।
बस अगली मुलाकात में बोली — "तुम्हारी दुनिया बहुत बड़ी है आरव… और मेरी बहुत छोटी।"
आरव ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा — "प्यार का कोई पता नहीं होता, काव्या… न जात, न नाम, न रुतबा… सिर्फ़ एहसास। और ये जो है, वही मेरा सच है।"
काव्या की आँखें भर आईं।
उसे पता था कि यह रिश्ता जितना सच्चा है, उतना ही असंभव भी।
लेकिन सच की सबसे बड़ी ताक़त ये होती है कि वह कभी दबता नहीं… वो वक्त आने पर सबके सामने आ जाता है।
और वह वक़्त अब आने वाला था…
कई दिनों तक काव्या कुछ नहीं बोली। वो आरव से मिलती रही, मुस्कराती रही, लेकिन हर मुलाकात के बाद उसका मन किसी भारी बोझ से दब जाता। वो सोचती थी — "मैं कौन हूँ उसके लिए? एक रहस्य? एक पल की राहत? या कुछ ऐसा जिसे वो अपनी दुनिया में छुपा कर रखना चाहता है?"
दूसरी ओर, आरव लगातार दो ज़िंदगियाँ जी रहा था — एक सार्वजनिक, जिसमें वो मंत्री का बेटा था, मीडिया का चेहरा, एक भविष्य का नेता; और दूसरी, जिसमें वो काव्या से मिलने एक आम लड़के की तरह सड़कों पर भटकता था, ऑटो लेता था, चश्मा और हुड पहन कर लाइब्रेरी में छिपता था।
लेकिन राजनीति की दुनिया इतनी चुप नहीं होती। विपक्षी नेता जावेद इक़बाल, जो विक्रम सिंह का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी था, उसे आरव की इस गुप्त प्रेम कहानी की भनक लग चुकी थी।
एक रात, एक पेज थ्री पार्टी में, जब विक्रम सिंह और कुछ उद्योगपतियों के बीच बातचीत चल रही थी, तभी एक रिपोर्टर पास आया और फुसफुसाकर बोला, "सर, क्या आपको पता है आरव किससे मिल रहा है?"
विक्रम सिंह के चेहरे पर तनाव की रेखाएँ गहराने लगीं। वो जानता था, अब बात दिल्ली की गलियों से निकल कर संसद की दीवारों तक पहुँच चुकी है।
अगली सुबह, काव्या के कॉलेज में बवाल मच गया। एक वेबसाइट पर खबर आई: "युवा भारत यूनियन के चेयरमैन आरव सिंह एक साधारण लड़की से प्रेम संबंध में — क्या यह सत्ता का अपमान है?"
काव्या का नाम नहीं लिया गया था, लेकिन तस्वीरें थीं — धुंधली, लेकिन साफ़ थी कि कोई निगरानी कर रहा था। दोस्तों ने सवाल उठाना शुरू किया। प्रोफेसरों ने ताने मारे। माँ-बाप ने डरते हुए पूछा — "काव्या, ये आरव कौन है? तुम उसके साथ...?"
काव्या ने चुपचाप अपनी किताबें बंद कीं, और पहली बार — कॉलेज नहीं गई।
उधर, आरव ने पहली बार अपने पिता के खिलाफ़ जाकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कैंसिल की, मोबाइल ऑफ कर दिया, और सीधे काव्या के घर पहुँचा।
दरवाज़ा काव्या के पिता ने खोला। "तुम वही हो न? मंत्रीजी का बेटा? तुम्हें क्या ज़रूरत थी हमारी बेटी से मिलने की?"
आरव ने सिर झुकाकर कहा, "सर, मैंने काव्या से कभी झूठ नहीं बोला… सिवाय अपने नाम के। मैं उससे प्यार करता हूँ।"
काव्या वहीं खड़ी थी — चुप, आँखों में गुस्सा और दर्द दोनों। "तुमने मुझसे छुपाया, आरव। तुमने कभी नहीं बताया कि तुम्हारी दुनिया इतनी अलग है।"
"मैं डरता था," आरव बोला, "कि तुम भी बाकियों की तरह सोचने लगोगी… रुतबे से, शक से…"
"मैं सोचने लग गई हूँ, आरव," काव्या की आवाज़ टूटी हुई थी, "और शायद अब ये सोचने का वक्त नहीं, छोड़ने का वक्त है।"
उसने दरवाज़ा बंद कर लिया।
उस रात, आरव अपने बंगले की छत पर बैठा रहा — बिना सुरक्षा, बिना फोन, बिना राजनीति के। नीचे लॉन में मीडिया का जमावड़ा था, और ऊपर आसमान में एक अकेली ध्रुव तारा चमक रही थी… जैसे वो भी इस कहानी का हिस्सा हो।
विक्रम सिंह अपने बेटे के पास आया — "तुमने सबकुछ बर्बाद कर दिया। विपक्ष हम पर हमला कर रहा है। प्रेस में तुम्हारी हँसी उड़ रही है। उस लड़की ने तुम्हें बदल दिया।"
"नहीं पापा," आरव ने कहा, "उसने मुझे मेरा असली चेहरा दिखाया है। जो पहले सिर्फ़ आपकी सत्ता का बेटा था… अब इंसान भी है।"
विक्रम सिंह को पहली बार एहसास हुआ — उनका बेटा अब उनकी पकड़ से निकल रहा है।
अगले दिन काव्या को एक धमकी भरा कॉल आया — "तुम आरव से दूर हो जाओ, वरना तुम्हारे पिता का ट्रांसफर पाकिस्तान बॉर्डर तक करवा देंगे।"
काव्या समझ चुकी थी — ये सिर्फ़ प्रेम नहीं, अब ये राजनीति का युद्ध बन चुका है।
वो आरव से मिलने गई। "मैं नहीं डरती… लेकिन मैं तुम्हारे लिए डरती हूँ।"
"तो हमारे लिए लड़ो," आरव ने उसका हाथ पकड़ा, "छुपकर नहीं… अब खुले में।"
वो पहली बार किसी प्रेस इवेंट में काव्या के साथ गया।
मीडिया पागल हो गई। "क्या ये सत्ता के उत्तराधिकारी की प्रेमिका है?" "क्या ये राजनीति का नया चेहरा है?"
आरव ने सबके सामने माइक लिया और कहा: "हां, मैं काव्या से प्यार करता हूँ। और हां, मैं मंत्री का बेटा हूँ। लेकिन उससे पहले, मैं एक इंसान हूँ।"
देश में हंगामा मच गया।
विक्रम सिंह ने अपने सारे संपर्क, ताक़त और मीडिया चैनलों का इस्तेमाल कर के आरव की छवि को बचाने की कोशिश की। लेकिन दिल से निकला हुआ सच अब काबू में नहीं था।
जावेद इक़बाल ने संसद में सवाल उठाया — "क्या हम देश की कमान एक ऐसे युवक को देंगे जो प्रेम की आड़ में राज चला रहा है?"
और उधर, काव्या के पिता का ट्रांसफर आदेश आ गया।
जब काव्या ने आरव को बताया, वो चुप हो गया।
"मैंने कहा था," काव्या बोली, "मैं नहीं डरती… लेकिन अब ये मेरे पापा की नौकरी की बात है।"
आरव ने उसका चेहरा पकड़ा, "कभी-कभी मोहब्बत के लिए राजनीति से लड़ना पड़ता है… और मैं अब पीछे नहीं हटूंगा।"
उसी रात, आरव ने मंत्री पद की उम्मीदवारी छोड़ दी — और एक स्टेटमेंट जारी किया: "अगर मेरी मोहब्बत देश की राजनीति के लिए ख़तरा है, तो मुझे राजनीति नहीं चाहिए।"
सारी मीडिया टूट पड़ी — "क्या यह सत्ता का त्याग है या बचकाना कदम?"
लेकिन जनता ने पहली बार आरव को एक ‘दिल से बोलने वाला इंसान’ माना।
लोगों ने कहा — "एक नेता जो प्रेम के लिए अपने पद से हटा — वो सच्चा हो सकता है!"
और वहीं से एक नया रास्ता शुरू हुआ — आरव और काव्या का रास्ता, जिसमें सत्ता के साए भी थे, लेकिन अब वो डर नहीं रहे थे…
देशभर में हलचल मची हुई थी। एक ताक़तवर मंत्री का बेटा सत्ता का ताज छोड़ चुका था… सिर्फ़ एक लड़की के लिए। जहां कुछ लोग इसे ‘प्यार की क्रांति’ कह रहे थे, वहीं कुछ राजनीतिक धड़े इसे एक चाल, एक पब्लिसिटी स्टंट समझ रहे थे।
मगर जिनके लिए ये कहानी चल रही थी — आरव और काव्या — उनके लिए ये सब सिर्फ़ एक शोर था। असली तूफ़ान तो अब आने वाला था।
एक दिन दिल्ली के एक बड़े न्यूज़ चैनल ने ब्रेकिंग न्यूज़ चलाई — "आरव सिंह के खिलाफ़ भ्रष्टाचार के दस्तावेज़! सत्ता से दूर जाने की ये असल वजह थी?"
आरव चौंक गया। "ये सब झूठ है! मेरे दस्तावेज़ों में ये सब कहाँ से आया?"
लेकिन इन सब फर्जी आरोपों के पीछे असली दिमाग था — जावेद इक़बाल।
विपक्ष जानता था कि अगर आरव को युवाओं की सहानुभूति और सच्चाई की छवि में ढालने दिया गया, तो वो अगला चुनाव बिना किसी राजनीतिक दल के भी जीत सकता है। और उससे बड़ा खतरा कुछ नहीं।
उसी शाम आरव के पुराने दोस्त और पत्रकार शौर्य मेहरा ने उसे फोन किया — "तेरे खिलाफ़ एक बड़ा खेल शुरू हो चुका है आरव। सिर्फ़ तेरी नहीं, काव्या की जान को भी खतरा है।"
आरव के शरीर में बिजली दौड़ गई। "काव्या कहाँ है?"
"कॉलेज गई है।"
लेकिन कॉलेज से लौटते वक्त एक बाइक सवार ने काव्या की स्कूटी को जोर से टक्कर मारी और भाग गया। काव्या गंभीर रूप से घायल हुई — सिर में चोट, हाथ टूटा, और शरीर पर कई जगह गहरे घाव।
आरव जब अस्पताल पहुँचा, उसका चेहरा खून से सना था और आंखों में एक ही चीज़ थी — ग़ुस्सा।
डॉक्टर ने कहा — "वो खतरे से बाहर है, लेकिन मानसिक झटका बहुत गहरा है। उसे समय लगेगा।"
आरव के मन में अब मोहब्बत नहीं, जंग पल रही थी। उसने पिता के पुराने सलाहकार राघव शर्मा से संपर्क किया — एक रिटायर्ड आईबी ऑफिसर जो कभी विक्रम सिंह की परछाईं हुआ करते थे।
"मुझे जानना है, कौन है इसके पीछे?" आरव ने कहा।
राघव ने कहा — "तेरे पास अब दो रास्ते हैं — एक जो तेरे दिल का है, और एक जो तेरे खून का। अगर तू चुन लेगा, तो मैं तेरे साथ हूं। लेकिन सच सुनने की हिम्मत होनी चाहिए।"
आरव ने सिर झुकाया — "मैं हर झूठ से लड़ने को तैयार हूँ।"
राघव ने फाइल खोलकर सामने रखा — "ये खेल सिर्फ़ जावेद इक़बाल का नहीं… तेरे अपने पिता का भी है।"
आरव चौंक गया। "पापा...? नहीं… वो कभी ऐसा नहीं कर सकते।"
"वो ही कर सकते हैं, आरव। उन्होंने ही काव्या का ट्रांसफर रुकवाया, फिर उसे हटवाया। उन्होंने ही मीडिया में स्टोरी लीक करवाई… ताकि तू राजनीति में वापस लौटे। उन्हें डर है कि तू अगर मोहब्बत के रास्ते पर गया, तो ‘राजा’ नहीं बनेगा, आम इंसान बन जाएगा। और वो ये कभी नहीं चाहेंगे।"
आरव की आंखें भर आईं। "उन्होंने अपनी ही औलाद को मोहरा बना दिया…"
उधर, काव्या अस्पताल में होश में आ चुकी थी। पर बहुत चुप थी। उसने कहा — "मैं अब और नहीं लड़ सकती आरव। मेरी वजह से तुम्हें सब कुछ खोना पड़ा।"
आरव ने उसका हाथ थामा — "नहीं, मैंने जो पाया है… वो इससे कहीं बड़ा है। और अब मैं तुम्हें खोने नहीं दूंगा।"
अगले कुछ दिनों में, आरव ने खुद को दुनिया से अलग कर लिया। वो अब सिर्फ़ एक प्रेमी नहीं, बल्कि एक योद्धा बन चुका था।
उसने सोशल मीडिया पर एक वीडियो डाला — "ये सिर्फ़ मेरी कहानी नहीं है, ये उन सभी की कहानी है जो सच्चाई से लड़ते हैं। मुझे राजनीति नहीं चाहिए… लेकिन इंसाफ चाहिए। और मैं ये लेकर रहूंगा।"
वीडियो वायरल हो गया।
देशभर में युवा उसका समर्थन करने लगे। #JusticeForKavya ट्रेंड करने लगा।
उधर जावेद इक़बाल को समझ आ गया कि अब मामला उसके हाथ से निकल रहा है। उसने विक्रम सिंह से संपर्क किया।
"आपका बेटा अब खतरा बन चुका है। या तो आप उसे रोकें… या मैं करूँगा।"
विक्रम सिंह पहली बार डगमगाए।
उन्हें समझ में आ गया था कि राजनीति का राक्षस अब उनके अपने ही घर को निगलने लगा है।
उन्होंने आरव से मिलने की कोशिश की, पर आरव ने मिलने से मना कर दिया।
तभी राघव ने आरव को एक वीडियो दिखाया — जिसमें जावेद और विक्रम सिंह की गुप्त मीटिंग रिकॉर्ड हुई थी। "अगर आरव मोहब्बत के नाम पर जनता को बहकाएगा, तो हमें उसकी कुर्बानी लेनी होगी।"
आरव ने वो वीडियो देखा और चुप रहा। फिर उठकर बाहर चला गया।
उस रात, उसने प्रधानमंत्री को एक सीधा ईमेल भेजा — "मेरे पास देश के दो सबसे ताकतवर नेताओं की साज़िश का प्रमाण है। मुझे सीबीआई जांच की मांग करनी है।"
प्रधानमंत्री कार्यालय में खलबली मच गई।
अगले ही दिन, एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई गई। आरव ने खुद सामने आकर पूरी साज़िश का खुलासा किया।
देश हिल गया।
विपक्ष और सत्ताधारी दल दोनों शर्मसार हो गए।
विक्रम सिंह को पार्टी ने निलंबित कर दिया। जावेद इक़बाल के खिलाफ़ जांच शुरू हो गई।
मगर इस सब के बीच आरव एक कोना ढूंढकर बैठा था — वही बुक कैफ़े जहाँ वो पहली बार काव्या से मिला था।
वो सोच रहा था — "ये सब जीत कर भी… मैंने क्या खोया?"
तभी किसी ने धीरे से उसका कंधा छुआ। वो पलटा।
काव्या खड़ी थी — हल्की सी मुस्कान लिए। "तुमने सबकुछ छोड़ दिया… सिर्फ़ मुझे पाने के लिए?"
"नहीं," आरव बोला, "मैंने सबकुछ इसलिए छोड़ा… ताकि तुम्हें कभी ना खोऊँ।"
उसने काव्या को गले लगाया। अब यह सिर्फ़ प्रेम नहीं था — यह एक नया युग था।
देश की राजनीति में तूफ़ान के बाद एक अजीब-सी शांति फैल गई थी। मंत्री पद से विक्रम सिंह का इस्तीफ़ा और विपक्षी नेता जावेद इक़बाल पर लगे आरोपों की जांच — सब कुछ साकार होने लगा था।
हर न्यूज़ चैनल पर एक ही चेहरा था — आरव सिंह, वो युवक जिसने प्यार के लिए सत्ता को ललकारा, परिवार के विरुद्ध गया और भ्रष्टाचार को बेनकाब किया।
जहाँ कुछ लोग उसे "इमोशनल और immature" कह रहे थे, वहीं करोड़ों युवाओं के लिए वो आइकन बन चुका था — जो मोहब्बत के लिए नहीं, सच के लिए लड़ा।
काव्या अब पूरी तरह ठीक हो चुकी थी। उसने अपने कॉलेज लौटने से पहले आरव से कहा, "अब सब कुछ खत्म हो गया… तो हम कहाँ से शुरू करें?"
आरव ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "वहीं से जहाँ पहली बार तेरी मुस्कान ने मुझे जीत लिया था।"
पर बात यहीं खत्म नहीं हुई थी।
देशभर में युवा आरव से उम्मीदें लगाने लगे थे — वे उसे नेता की तरह देखने लगे। "तुम राजनीति में वापस आओ," "एक नई पार्टी बनाओ," "तुम जैसा कोई नहीं…" सोशल मीडिया, कॉलेज कैंपस, पब्लिक मीटिंग्स — हर जगह सिर्फ़ उसका नाम था।
काव्या ने पूछा, "क्या तुम फिर राजनीति में जाना चाहोगे? इस बार अपनी शर्तों पर?"
आरव चुप रहा।
उसने कहा, "पहले मुझे अपने पिता से मिलना है।"
वह विक्रम सिंह के फार्महाउस पहुँचा — एक वीरान और शांत जगह जहाँ कभी सत्ता की गूंज हुआ करती थी। आज वहाँ सिर्फ़ अकेलापन था।
विक्रम सिंह छत पर बैठे अख़बार पढ़ रहे थे — जिसमें उनका नाम 'भ्रष्ट नेता' और 'गिरे हुए पिता' के रूप में छपा था।
आरव ने पास जाकर कहा, "आपसे नफ़रत नहीं है मुझे, पापा। बस अब मैं आपके जैसा नहीं बनना चाहता।"
विक्रम सिंह ने अखबार मोड़कर देखा, "तो अब क्या बनोगे? संत?"
"नहीं," आरव बोला, "नेता बनूँगा। लेकिन ऐसा, जो अपनी सच्चाई के लिए जाने। जो मोहब्बत को कमजोरी नहीं, ताक़त समझे।"
विक्रम सिंह मुस्कराए — पहली बार उस मुस्कान में हार की स्वीकृति थी।
आरव और काव्या ने मिलकर एक नई संस्था शुरू की — "सच्चा भारत मंच" जहाँ हर तबके के लोग, हर जाति, हर धर्म, हर विचारधारा के लोग — सिर्फ़ सच्चाई के साथ आ सकते थे।
काव्या ने कहा, "यह सिर्फ़ राजनीति नहीं… ये आंदोलन है।"
इस मंच ने भ्रष्टाचार के खिलाफ़ काम करना शुरू किया — RTI, स्टूडेंट स्कॉलरशिप, महिला सुरक्षा, और शिक्षा के अधिकार जैसे मुद्दों पर सीधा काम।
आरव अब किसी पार्टी का चेहरा नहीं था — वो जनता का चेहरा बन चुका था।
अगले चुनाव में जब जनता ने युवा नेता चुनने का समय आया — "सच्चा भारत मंच" ने भारी जनसमर्थन के साथ दिल्ली की सीटें जीत लीं।
आरव और काव्या — अब सिर्फ़ प्रेमी नहीं थे, बल्कि उस बदलाव के प्रतीक बन चुके थे, जिसकी भारत को ज़रूरत थी।
एक दिन एक बच्चा आरव से मिलने आया, उसने पूछा — "सर, क्या प्यार भी राजनीति बदल सकता है?"
आरव ने मुस्कराकर जवाब दिया — "अगर वो सच्चा हो… तो प्यार ही सबसे बड़ी क्रांति बन सकता है।"
सालों बाद, जब इतिहास लिखा जाएगा, तो शायद एक पंक्ति में ये कहानी आएगी — "उसने मोहब्बत की शुरुआत की थी… लेकिन देश को भी बदल दिया था।"
और काव्या?
उसने अपनी पहली किताब छपवाई — "साजिशों के बीच मोहब्बत"
कवर पर एक पंक्ति थी — "यह कहानी सिर्फ़ एक प्रेम की नहीं… बल्कि उस शक्ति की है, जो सच्चे दिलों को जोड़ती है, और झूठी सत्ता को तोड़ देती है।"